द फॉलोअप टीम, रांचीः
राज्य में लगभग 73 हजार आदिम जनजाति समुदाय (पीवीटीजी) के परिवार रहते हैं। इन समूहों की अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान है। यह समूह आजीविका के लिए भी पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। पीवीटीजी के बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने में उड़ान परियोजना राज्य में चल रही है। इसके तहत 'पीवीटीजी पाठशाला' लगाई जा रही है। जिससे सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। परियोजना का उद्देश्य ही है सुदूर गांवों, जंगलों में रहनेवाले असुरक्षित जनजातीय समूह के बच्चों में सकारात्मक बदलाव लाना । इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी की पहल रंग दिखाने लगी है। सोसाइटी बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने, उनमें बुनियादी शिक्षा को मजबूत करने तथा पढ़ने-लिखने की आदत और रुचि पैदा करने के अथक प्रयास में जुटी है।
140 पीवीटीजी पाठशाला का हो रहा है संचालन
पीवीटीजी परिवार के बच्चों को शिक्षा से आच्छादित करने के उद्देश्य से उड़ान परियोजना के तहत राज्य के पाकुड़, दुमका, देवघर, गोड्डा, गढ़वा, लातेहार, पलामू, गुमला, सरायकेला और पूर्वी सिंहभूम में 140 पीवीटीजी पाठशाला का संचालन ग्राम स्तर पर किया जा रहा है। इन 140 पीवीटीजी पाठशाला चल रही है। इनमें करीब 3000 असुरक्षित जनजातीय समूह के बच्चे पढ़ रहे हैं। पीवीटीजी पाठशाला में पढ़ाने का कार्य पीवीटीजी चेंजमेकर्स करते हैं।
ये चेंजमेकर भी पीवीटीजी समुदाय से ही होते हैं। इनका चयन गांव में मौजूद पीवीटीजी समूह के बीच से ही किया जाता है, ताकि बच्चों को पढ़ने में सहूलियत हो। ये चेंजमेकर्स नौनिहालों के लिए प्रतिदिन सुबह-शाम पाठशाला का आयोजन कर उन्हें बुनियादी शिक्षा प्रदान करते हैं। ऐसे में महामारी के इस कठिन दौर में पीवीटीजी पाठशाला मील का पत्थर साबित हो रहा है। इससे न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई के प्रति रुचि फिर से जाग रही है, बल्कि अब अभिभावक भी शिक्षा के महत्व और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर जागरूक हुए हैं।
पाठशाला किट का भी किया जा रहा वितरण
पढ़ाई में सुविधा और बच्चों की रुचि बनाए रखने के लिए पीवीटीजी पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों के बीच पाठशाला किट के माध्यम से कुछ बुनियादी शिक्षण सामग्री का भी वितरण किया जाता है, जो इन बच्चों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर रहा है। पीवीटीजी पाठशाला में नियमित रूप से अभिभावक-शिक्षक बैठक का आयोजन किया जाता है। इससे उन्हें भी अपने बच्चों की क्षमता और रुचियों की जानकारी मिल पाती है।